स्वतंत्रता दिवस (भारत) Independence Day (India) | |
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![]() लाल किले पर फहराता तिरंगा; स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर फहरते झंडे अनेक इमारतों व स्थानों पर देखे जा सकते हैं। | |
अनुयायी | ![]() |
प्रकार | राष्ट्रीय अवकाश |
उत्सव | राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र को संबोधन, झंडे को फहराना, परेड, देशभक्ति के गीत राष्ट्रगान, |
तिथि | 15 अगस्त |
आवृत्ति | प्रतिवर्ष |
भारत का स्वतंत्रता दिवस (अंग्रेज़ी: Independence Day of India) हर वर्ष १५ अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है।
प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। १५ अगस्त १९४७ के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।[1] महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों ने काफी हद तक अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया। स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान का उदय हुआ। विभाजन के बाद दोनों देशों में हिंसक दंगे भड़क गए और सांप्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएं हुईं। विभाजन के कारण मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए। [2]
इस दिन को झंडा फहराने के समारोह, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पूरे भारत में मनाया जाता है। भारतीय इस दिन अपनी पोशाक, सामान, घरों और वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित कर इस उत्सव को मनाते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ देशभक्ति फिल्में देखते हैं, देशभक्ति के गीत सुनते हैं।[3]
इतिहास
यूरोपीय व्यापारियों ने 17वीं सदी से ही भारतीय उपमहाद्वीप में पैर जमाना आरम्भ कर दिया था। अपनी सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी करते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 18वीं सदी के अन्त तक स्थानीय राज्यों को अपने वशीभूत करके अपने आप को स्थापित कर लिया था। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 के अनुसार भारत पर सीधा आधिपत्य ब्रितानी ताज (ब्रिटिश क्राउन) अर्थात ब्रिटेन की राजशाही का हो गया। दशकों बाद नागरिक समाज ने धीरे-धीरे अपना विकास किया और इसके परिणामस्वरूप 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई० एन० सी०) निर्माण हुआ।[4][5]प्रथम विश्वयुद्ध के बाद का समय ब्रितानी सुधारों के काल के रूप में जाना जाता है जिसमें मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार गिना जाता है लेकिन इसे भी रोलेट एक्ट की तरह दबाने वाले अधिनियम के रूप में देखा जाता है जिसके कारण भारतीय समाज सुधारकों द्वारा स्वशासन का आवाहन किया गया। इसके परिणामस्वरूप महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों तथा राष्ट्रव्यापी अहिंसक आंदोलनों की शुरूआत हो गयी।[5]
1930 के दशक के दौरान ब्रितानी कानूनों में धीरे-धीरे सुधार जारी रहे; परिणामी चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की।[5] अगला दशक काफी राजनीतिक उथल पुथल वाला रहा: द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की सहभागिता, कांग्रेस द्वारा असहयोग का अन्तिम फैसला और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय। 1947 में स्वतंत्रता के समय तक राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। इस उपमहाद्वीप के आनन्दोत्सव का अंत भारत और पाकिस्तान के विभाजन के रूप में हुआ।[5]
स्वतंत्रता से पहले स्वतंत्रता दिवस
1929 लाहौर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषणा की और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में घोषित किया। कांग्रेस ने भारत के लोगों से सविनय अवज्ञा करने के लिए स्वयं प्रतिज्ञा करने व पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति तक समय-समय पर जारी किए गए कांग्रेस के निर्देशों का पालन करने के लिए कहा।[6]
इस तरह के स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन भारतीय नागरिकों के बीच राष्ट्रवादी ईंधन झोंकने के लिये किया गया व स्वतंत्रता देने पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार को मजबूर करने के लिए भी किया गया।[7] कांग्रेस ने 1930 और 1950 के बीच 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया।[8][9] इसमें लोग मिलकर स्वतंत्रता की शपथ लेते थे। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में इनका वर्णन किया है कि ऐसी बैठकें किसी भी भाषण या उपदेश के बिना, शांतिपूर्ण व गंभीर होती थीं।[10] गांधी जी ने कहा कि बैठकों के अलावा, इस दिन को, कुछ रचनात्मक काम करने में खर्च किया जाये जैसे कताई कातना या हिंदुओं और मुसलमानों का पुनर्मिलन या निषेध काम, या अछूतों की सेवा। 1947 में वास्तविक आजादी के बाद [11],भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया; तब के बाद से 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
तात्कालिक पृष्ठभूमि
सन् 1946 में, ब्रिटेन की लेलेबर पार्टी की सरकार का राजकोष, हाल ही में समाप्त हुए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद खस्ताहाल था। तब उन्हें एहसास हुआ कि न तो उनके पास घर पर जनादेश था और न ही अंतर्राष्ट्रीय समर्थन। इस कारण वे तेजी से बेचैन होते भारत को नियंत्रित करने के लिए देसी बलों की विश्वसनीयता भी खोते जा रहे थे। फ़रवरी 1947 में प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने ये घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 से ब्रिटिश भारत को पूर्ण आत्म-प्रशासन का अधिकार प्रदान करेगी।[12][13] [14][15] अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को आगे बढ़ा दिया क्योंकि उन्हें लगा कि, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लगातार विवाद के कारण अंतरिम सरकार का पतन हो सकता है। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख के रूप में, द्वितीय विश्व युद्ध, में जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी सालगिराह 15 अगस्त को चुना।[16] ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत को दो राज्यों में विभाजित करने के विचार को 3 जून 1947 को स्वीकार कर लिया[12] व ये भी घोषित किया कि उत्तराधिकारी सरकारों को स्वतंत्र प्रभुत्व दिया जाएगा और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने का पूर्ण अधिकार होगा।
यूनाइटेड किंगडम की संसद के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 (10 और 11 जियो 6 सी. 30) के अनुसार 15 अगस्त 1947 से प्रभावी (अब बांग्लादेश सहित) ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान नामक दो नए स्वतंत्र उपनिवेशों में विभाजित किया और नए देशों के संबंधित घटक असेंबलियों को पूरा संवैधानिक अधिकार दे दिया।[17] 18 जुलाई 1947 को इस अधिनियम को शाही स्वीकृति प्रदान की गयी।
स्वतंत्रता व बंटवारा

सुबह 08.30 बजे – गवर्नमेंट हाउस पर गवर्नर जनरल और मंत्रियों का शपथ समारोह
सुबह 09.40 बजे – संवैधानिक सभा की और मंत्रियों का प्रस्थान
सुबह 09.50 बजे – संवैधानिक सभा तक स्टेट ड्राइव
सुबह 09.55 बजे – गवर्नर जनरल को शाही सलाम
सुबह 10.30 बजे – संवैधानिक सभा में राष्ट्रीय ध्वज को फहराना
सुबह 10.35 बजे – गवर्नमेंट हाउस तक स्टेट ड्राइव
सायं 06.00 बजे – इंडिया गेट पर झंडा समारोह
सायं 07.00 बजे – प्रकाश
सायं 07.45 बजे – आतिश बाज़ी प्रदर्शन
सायं 08.45 बजे – गवर्नमेंट हाउस पर आधिकारिक रात्रि भोज (डिनर)
रात्रि 10.15 बजे – गवर्नमेंट हाउस पर स्वागत समारोह
लाखों मुस्लिम, सिख और हिन्दू शरणार्थियों ने स्वतंत्रता के बाद तैयार नयी सीमाओं को पैदल पार कर सफर तय किया।[18] पंजाब जहाँ सीमाओं ने सिख क्षेत्रों को दो हिस्सों में विभाजित किया, वहां बड़े पैमाने पर रक्तपात हुआ, बंगाल व बिहार में भी हिंसा भड़क गयी पर महात्मा गांधी की उपस्थिति ने सांप्रदायिक हिंसा को कम किया। नई सीमाओं के दोनों ओर 2 लाख 50 हज़ार से 10 लाख लोग हिंसा में मारे गए। पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, वहीं[19], गांधी जी नरसंहार को रोकने की कोशिश में कलकत्ता में रुक गए,[20] पर 14 अगस्त 1947, को पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस घोषित हुआ और पाकिस्तान नामक नया देश अस्तित्व में आया; मुहम्मद अली जिन्ना ने कराची में पहले गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ली।
भारत की संविधान सभा ने नई दिल्ली में संविधान हॉल में 14 अगस्त को 11 बजे अपने पांचवें सत्र की बैठक की।[21] सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की। इस सत्र में जवाहर लाल नेहरू ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी नामक भाषण दिया।
सभा के सदस्यों ने औपचारिक रूप से देश की सेवा करने की शपथ ली। महिलाओं के एक समूह ने भारत की महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया व औपचारिक रूप से विधानसभा को राष्ट्रीय ध्वज भेंट किया।[21] आधिकारिक समारोह नई दिल्ली में हुए जिसके बाद भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। नेहरू ने प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पद ग्रहण किया, और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले गवर्नर जनरल के रूप में अपना पदभार संभाला। महात्मा गांधी के नाम के साथ लोगों ने इस अवसर को मनाया। गांधी ने हालांकि खुद आधिकारिक घटनाओं में कोई हिस्सा नहीं लिया। इसके बजाय, उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति को प्रोत्साहित करने के लिए कलकत्ता में एक भीड़ से बात की, उस दौरान ये 24 घंटे उपवास पर रहे।[7]
15 अगस्त 1947 को सुबह 11:00 बजे संघटक सभा ने भारत की स्वतंत्रता का समारोह आरंभ किया, जिसमें अधिकारों का हस्तांतरण किया गया। जैसे ही मध्यरात्रि की घड़ी आई भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की और एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (नियति से वादा) नामक अपना प्रसिद्ध भाषण दिया:
कई सालों पहले, हमने नियति से एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में विरले ही आता है, जब हम पुराने से बाहर निकल नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लम्बे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं।... आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवतः ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके? कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।
— ट्रिस्ट विद डेस्टिनी भाषण के अंश, जवाहरलाल नेहरू[22]
इस भाषण को 20वीं सदी के महानतम भाषणों में से एक माना जाता है।[23]
समारोह


पूरे भारत में अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
प्रवासी भारतीयों विशेषकर भारतीय आप्रवासियों की उच्च सघनता के क्षेत्रों में परेड और प्रतियोगिताओं के साथ दुनिया भर में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।[24] न्यूयॉर्क और अन्य अमेरिकी शहरों में कुछ स्थानों में, 15 अगस्त प्रवासी और स्थानीय आबादी के बीच में भारत दिवस बन गया है। यहां लोग 15 अगस्त के आसपास या सप्ताह के अंतिम दिन पर भारत दिवस मनाते हैं व प्रतियोगिताएँ रखते हैं।[25]
राष्ट्रीय स्तर पर
देश के प्रथम नागरिक और देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर "राष्ट्र के नाम संबोधन" देते हैं।[3] इसके बाद अगले दिन दिल्ली में लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है, जिसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। आयोजन के बाद स्कूली छात्र तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्र गान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर राष्ट्रीय राजधानी तथा सभी शासकीय भवनों को रंग बिरंगी विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, जो शाम का सबसे आकर्षक आयोजन होता है।[3]
राज्य/स्थानीय स्तर पर
देश के सभी राज्यों की राजधानी में इस अवसर पर विशेष झंडावंदन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, तथा राज्य के सुरक्षाबल राष्ट्रध्वज को सलामी देते हैं। प्रत्येक राज्य में वहाँ के मुख्यमंत्री ध्वजारोहण करते हैं। स्थानीय प्रशासन, जिला प्रशासन, नगरीय निकायों, पंचायतों में भी इसी प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शासकीय भवनों को आकर्षक पुष्पों से तिरंगे की तरह सजाया जाता है। छोटे पैमाने पर शैक्षिक संस्थानों में, आवासीय संघों में, सांस्कृतिक केन्द्रों तथा राजनैतिक सभाओं का आयोजन किया जाता है।[3]
एक अन्य अत्यंत लोकप्रिय गतिविधि जो स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है और यह है पतंगें उड़ाना (अधिकतर दिल्ली व गुजरात में)। आसमान में हजारों रंग बिरंगी पतंगें देखी जा सकती हैं, ये चमकदार पतंगें हर भारतीय के घर की छतों और मैदानों में देखी जा सकती हैं और ये पतंगें इस अवसर के आयोजन का अपना विशेष तरीका हैं।[3]
सुरक्षा खतरे
आजादी के तीन साल बाद, नागा नेशनल काउंसिल ने उत्तर पूर्व भारत में स्वतंत्रता दिवस के बहिष्कार का आह्वान किया। इस क्षेत्र में[26] अलगाववादी विरोध प्रदर्शन 1980 के दशक में तेज हो गए और उल्फा व बोडोलैंड के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड की ओर से आतंकवादी हमलों व बहिष्कारों की ख़बरें आती रहीं।[27] 1980 के दशक से जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद में वृद्धि के साथ,[28] अलगाववादी प्रदर्शनकारियों ने बंद करके, काले झंडे दिखाकर और ध्वज जलाकर वहां स्वतंत्रता दिवस का बहिष्कार किया।[29][30][31]
इसी के साथ लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन और जैश-ए-मोहम्म्द जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा धमकियाँ भी जारी की गयीं और स्वतंत्रता दिवस के आसपास हमले किए गए हैं।[32] उत्सव के बहिष्कार की विद्रोही माओवादी संगठनों द्वारा वकालत की गई।[33][34] विशेष रूप से आतंकवादियों की ओर से आतंकवादी हमलों की आशंका में सुरक्षा उपायों को, विशेषकर दिल्ली, मुंबई व जम्मू-कश्मीर के संकटग्रस्त राज्यों के प्रमुख शहरों में, कड़ा कर दिया जाता है।[35] हवाई हमलों से बचने के लिए लाल किले के आसपास के इलाके को नो फ्लाई ज़ोन (उड़न निषेध क्षेत्र) घोषित किया जाता है और अतिरिक्त पुलिस बलों को अन्य [36] शहरों में भी तैनात किया जाता है।[37]
लोकप्रिय संस्कृति में
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर हिंदी देशभक्ति के गीत और क्षेत्रीय भाषाओं में टेलीविजन और रेडियो चैनलों पर प्रसारित किए जाते हैं। इनको झंडा फहराने के समारोह के साथ भी बजाया जाता है।[38] देशभक्ति की फिल्मों का प्रसारण भी होता है, टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार ऐसी फिल्मों के प्रसारण की संख्या में कमी आई है।[39] नयी पीढ़ी के लिए तीन रंगो में रंगे डिज़ाइनर कपड़े भी इस दौरान दिखाई दे जाते हैं।
खुदरा स्टोर स्वतंत्रता दिवस पर बिक्री के लिए छूट प्रदान करते हैं।[40] कुछ समाचार चैनलों ने इस दिवस के व्यवसायीकरण की निंदा की है।[41] भारतीय डाक सेवा 15 अगस्त को स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं, राष्ट्रवादी विषयों और रक्षा से संबंधित विषयों पर डाक टिकट प्रकाशित करता है।[42] इंटरनेट पर, 2003 के बाद गूगल अपने भारतीय होमपेज पर एक विशेष गूगल डूडल के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाता है।[43]
चित्रशाला
सन्दर्भ
- "Manmohan first PM outside Nehru-Gandhi clan to hoist flag for 10th time" [नेहरू-गाँधी परिवार के लोगों के बाद मनमोहन सिंह दसवीं बार झण्डा फहराने वाले पहले प्रधानमंत्री] (अंग्रेज़ी भाषा में). दि हिन्दू. 15 अगस्त 2013. 21 दिसंबर 2013 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 15 अगस्त 2015.
- क्या आपको पता है भारत-पाक बंटवारे की ये सच्चाई, सिर चकरा जाएगा आपका..! Archived 2017-01-13 at the वेबैक मशीन - न्यूज़ 18 इंडिया - 6 जून 2016
- स्वतंत्रता दिवस Archived 2016-08-19 at the वेबैक मशीन - archive.india.gov.in
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By the end of 1945, he and the Commander-in-chief, General Auckinleck were advising that there was a real threat in 1946 of large-scale anti-British disorder amounting to even a well-organized rising aiming to expel the British by paralysing the administration. ...it was clear to Attlee that everything depended on the spirit and reliability of the Indian Army:"Provided that they do their duty, armed insurrection in India would not be an insoluble problem. If, however, the Indian Army was to go the other way, the picture would be very different. ...Thus, Wavell concluded, if the army and the police "failed" Britain would be forced to go. In theory, it might be possible to revive and reinvigorate the services, and rule for another fifteen to twenty years, but:It is a fallacy to suppose that the solution lies in trying to maintain the status quo. We have no longer the resources, nor the necessary prestige or confidence in ourselves.
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at position 262 (help) - ब्राउन, जूडिथ मार्गरेट (1994). Modern India: the Origins of an Asian Democracy [आधुनिक भारत: एशियाई लोकतंत्र के मूल] (अंग्रेज़ी भाषा में). ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस. p. 330. ISBN 978-0-19-873112-2.
India had always been a minority interest in British public life; no great body of public opinion now emerged to argue that war-weary and impoverished Britain should send troops and money to hold it against its will in an empire of doubtful value. By late 1946 both Prime Minister and Secretary of State for India recognized that neither international opinion nor their own voters would stand for any reassertion of the raj, even if there had been the men, money, and administrative machinery with which to do so
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With a war weary army and people and a ravaged economy, Britain would have had to retreat; the Labour victory only quickened the process somewhat
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